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Showing posts from June, 2018
क्या है धारा 482 भारतीय दण्ड संहिता की धारा 482 के तहत आप अपने खिलाफ लिखाई गई एफआईआर को चैलेन्ज करते हुए हाईकोर्ट से निष्पक्ष न्याय की मांग कर सकते हैं। इसके लिए आपको अपने वकील के माध्यम से हाई कोर्ट में एक प्रार्थनापत्र देना होता है जिसमें आप पुलिस द्वारा दर्ज की गई एफआईआर पर प्रश्नचिन्ह लगा सकते हैं। यदि आपके पास अपनी बेगुनाही के सबूत जैसे कि ऑडियो रिकॉर्डिग, वीडियो रिकॉर्डिग, फोटोग्राफ्स, डॉक्यूमेन्टस हो तो आप उनको अपने प्रार्थना पत्र के साथ संलग्न करें। ऎसा करने से हाई कोर्ट में आपका केस मजबूत हो बन जाता है और आपके खिलाफ दर्ज एफआईआर कैंसिल होने के आसार मजबूत हो जाते हैं। कैसे करें धारा 482 का प्रयोग धारा 482 का प्रयोग दो तरह से किया जाता है। पहला प्रयोग अधिकतया दहेज तथा तलाक के मामलों में किया जाता है। इन मामलों में दोनों पार्टियां आपसी रजामंदी से सुलह कर लेती है जिसके बाद वधू पक्ष हाईकोर्ट में वर पक्ष के खिलाफ एफआईआर कैंसिल करने की एप्लीकेशन देता है, जिसके बाद वर पक्ष के खिलाफ दायर 498, 406 तथा अन्य धाराओं में दर्ज मामले हाई कोर्ट के आदेश पर बन्द कर दिए जाते हैं। दूसरा प
उत्तराधिकार और वसीयत के कानून उत्तराधिकार कानून के तहत अगर किसी व्यक्ति ने वसीयत नहीं की है तो उसके मरने के बाद उसकी संपत्ति किसे मिलेगी। हालांकि अलग-अलग धार्मिक समुदायों के उत्तराधिकार के लिए अलग-अलग कानून हैं । हिंदुओं को उत्तराधिकार 1-किसी हिंदू की मृत्यु होने पर उसकी संपत्ति उसकी विधवा , बच्चों(लड़के तथा लड़कियां) तथा मां के बीच बराबर बांटी जाती है । 2-अगर उसके किसी पुत्र की उससे पहले मृत्यु हो गयी हो तो बेटे की विधवा तथा बच्चों को संपत्ति का एक हिस्सा मिलेगा। 3-उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि किसी हिंदू पुरुष द्वारा पत्नी के जीवित रहते दूसरी शादी कर लेने से दूसरी पत्नी को उत्तराधिकार नहीं मिलता है , लेकिन उसके बच्चों का पहली पत्नी के बच्चों की तरह ही अधिकार होता है । 4-हिंदू महिला की संपत्ति उसके बच्चों (लड़के तथा लड़कियां ) तथा पति को मिलेगी । उससे पहले मरने वाले बेटे के बच्चों को भी बराबर का एक हिस्सा मिलेगा । 5-अगर किसी हिंदू व्यक्ति के परिवार के नजदीकी सदस्य जीवित नहीं हैं, तो उसकी मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति पाने वाले उत्तराधिकारियों का निश्चित वर्गीकरण होता है ।
                                      C.M.TIWARI                                              Advocate  High court of MP                                    Mo- 09826525217 मौलिक अधिकार उन अधिकारों को कहा जाता है जो व्यक्ति के जीवन के लिये मौलिक होने के कारण संविधान द्वारा नागरिकों को प्रदान किये जाते हैं और जिनमें राज्य द्वार हस्तक्षेप नही किया जा सकता। ये ऐसे अधिकार हैं जो व्यक्ति के व्यक्तित्व के पूर्ण विकास के लिये आवश्यक हैं और जिनके बिना मनुष्य अपना पूर्ण विकास नही कर सकता। ये अधिकार कई करणों से मौलिक हैं:- 1. इन अधिकारों को मौलिक इसलिये कहा जाता है क्योंकि इन्हे देश के संविधान में स्थान दिया गया है तथा संविधान में संशोधन की प्रक्रिया के अतिरिक्त उनमें किसी प्रकार का संशोधन नही किया जा सकता। 2. ये अधिकार व्यक्ति के प्रत्येक पक्ष के विकास हेतु मूल रूप में आवश्यक हैं, इनके अभाव में व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास अवरुद्द हो जायेगा। 3. इन अधिकारों का उल्लंघन नही किया जा सकता। 4. मौलिक अधिकार न्याय योग्य हैं तथा समाज के प्रत्येक व्यक्ति को समान रूप से प्राप्त होते है।

अनुच्छेद 370

  Advocate C.M. Tiwari  High court of MP  9826525217                                                                                                                                                                     धारा 370 पर हमेशा देश की राजनीति में उबाल आता रहा है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष स्वायत्ता दी गई है। जम्मू-कश्मीर रियासत के महाराजा हरि सिंह जब जम्मू-   कश्मीर का विलय भारतीय गणराज्य में कर रहे थे तो उस वक्त उन्होंने इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन नाम के   दस्तावेज पर साइन किया था। अनुच्छेद 370 इसी के अंतर्गत आता है। इसके प्रावधानों को शेख अब्दुला ने         तैयार किया था, जिन्हें उस वक्त हरि सिंह और तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने जम्मू- कश्मीर  का प्रधानमंत्री नियुक्त किया था।  सरदार पटेल को अंधेरे में रखकर नेहरूजी ने धारा-370 का मसौदा पहले से ही तैयार करवा लिया था। इस धारा का विरोध उस समय कांग्रेस पार्टी में भी हुआ था। पं. नेहरू के   समर्थन में और शेख अब्दुला के मंत्रिमंडल से विचार विमर्श के बाद गोपाल स्वामी अय्यं
                                          Advocate C.M.Tiwari high court of mp        अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हम एक आर्थिक और राजनीतिक शक्ति पुंज के रूप में उभर रहे हैं. हमारे संविधान ने हमें जो अधिकार और अवसर दिए हैं उन्हें भी प्रमुखता मिल रही है. आज महिलाएं भी मेहनत कर रही हैं और अपने करियर को लेकर गंभीर हैं. हांलाकि, मानसिक, शारीरिक और यौन उत्पीड़न, स्त्री द्वेष और लिंग असमानता इनमें से ज्यादातर के लिए जीवन का हिस्सा बन गई हैं. ऐसे में महिलाओं को भी भारतीय कानून द्वारा दिए गए अधिकारों के प्रति जागरुकता होनी चाहिए. 1. समान वेतन का अधिकार-  समान पारिश्रमिक अधिनियम के अनुसार, अगर बात वेतन या मजदूरी की हो तो लिंग के आधार पर किसी के साथ भी भेदभाव नहीं किया जा सकता. 2. काम पर हुए उत्पीड़न के खिलाफ अधिकार - काम पर हुए यौन उत्पीड़न अधिनियम के अनुसार आपको यौन उत्पीड़न के खिलाफ शिकायत दर्ज करने का पूरा अधिकार है. 3. नाम न छापने का अधिकार-  यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाओं को नाम न छापने देने का अधिकार है. अपनी गोपनीयता की रक्षा करने के लिए यौन उत्पीड़न की शिकार हुई महिला अकेले अपना बयान

125 CRPC

Section 125 in The Code Of Criminal Procedure, 1973 125. Order for maintenance of wives, children and parents. (1)  If any person having sufficient means neglects or refuses to maintain- (a)  his wife, unable to maintain herself, or (b)  his legitimate or illegitimate minor child, whether married or not, unable to maintain itself, or  C.M. Tiwari advocate MP high court 9826525217. (c)  his legitimate or illegitimate child (not being a married daughter) who has attained majority, where such child is, by reason of any physical or mental abnormality or injury unable to maintain itself, or (d)  his father or mother, unable to maintain himself or herself, a Magistrate of the first class may, upon proof of such neglect or refusal, order such person to make a monthly allowance for the maintenance of his wife or such child, father or mother, at such monthly rate not exceeding five hundred rupees in the whole, as such Magistrate thinks fit, and to pay the same to such person as